नानकमत्ता साहिब गुरुद्वारा, उत्तराखंड
नानकमत्ता साहिब गुरुद्वारा, उत्तराखंड
नमस्कार दगड़ियों आज हम आपको अपनी इस पोस्ट में उत्तराखंड में सिखों के तीर्थ स्थल नानकमत्ता साहिब गुरुद्वारा के बारे में बताएंगे।
नानकमत्ता साहिब गुरुद्वारा-
श्री नानकमत्ता साहिब गुरुद्वारा सिखों का एक पवित्र तीर्थ स्थल मंदिर है, नानकमत्ता साहिब उत्तराखंड के जिलें उधमसिंह नगर के खटीमा क्षेत्र में देवहा जल धरा के किनारे स्थित हैं। यह स्थान सिखों के सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक है। नानकमत्ता गुरुद्वारे का निर्माण सरयू नदी पर किया गया है और नानक सागर डेम पास में ही स्थित है, जिसे नानक सागर के नाम से जाना जाता है।
नानकमत्ता साहिब वह पवित्र स्थान है जहाँ सिक्खों के प्रथम गुरू नानकदेव जी और छठे गुरू हरगोविन्द साहिब के चरण पड़े और यह राज्य में तीन सिख पवित्र स्थलों में से एक है, अन्य पवित्र स्थानों में गुरुद्वारा हेम कुंड साहिब और गुरुद्वारा रीठा साहिब हैं। तीसरी उदासी के समय गुरू नानकदेव जी रीठा साहिब से चलकर सन् 1508 के लगभग भाई मरदाना जी के साथ यहाँ पहुँचे।
नानकमत्ता साहिब गुरुद्वारा का इतिहास-
श्री नानकमत्ता साहिब गुरुद्वारा पहले गुरु नानक देव जी के इतिहास से जुड़ा हुआ है, जो कि 1514 ईस्वी में अपने तीसरे उदासी के दौरान वहां गए थे। उस समय श्री नानकमत्ता साहिब गुरुद्वारा, गुरु गोरखनाथ के भक्तो का निवास स्थान था तथा उस समय यह स्थान सिद्धों का निवास भी था और इसे गोरखमट्टा और सिद्धमत्ता कहा जाता था।
ऐसी मान्यता है कि सिखों के पहले गुरु गुरुनानक देव जी ने सन् 1515 में कैलाश पर्वत की यात्रा के दौरान नानकमत्ता का भी भ्रमण किया था। श्री नानकमत्ता साहिब गुरुद्वारा में एक पीपल का सुखा पेड था। जिसके निचे बैठ के गुरुनानक देव जी अपना आसन जमा लिया करते थे।
पीपल साहिब का इतिहास-
यह पीपल साहिब श्री गुरू नानक देव जी एवं श्री गुरू हरिगोविन्द साहिब जी की चरणछोह प्राप्त रहमतों का प्रतीक है, तीसरी उदासी ( उत्तराखण्ड ) यात्रा के समय श्री गुरूनानक देव जी जब इस स्थान पर पहुंचे तो यह पीपल का वृक्ष सूखा हुआ था। श्री गुरुनानक देव जी की चरणछोह प्राप्त कर यह पीपल हरा भरा हो गया। गुरूनानक जी का अलौकिक चमत्कार देख के सिद्धों योगियों ने ईर्ष्यावश हो कर अपनी योग शक्ति से पीपल के पेड़ को हवा में उड़ा दिया। गुरूनानक जी ने अपनी कृपा से उड़ते हुए पीपल को अपना पवित्र पंजा लगा के जमीन से 6-7 फुट ऊपर ही रोक लिया।
गुरुनानक जिन सुनया पेखया से फिर गरभास न परया रे।
श्री गुरूनानक देव जी के चले जाने के बाद बाबा अलमस्त जी यहां की सेवा करने लगे। सिद्धों योगियों ने दुबारा यहां आके बाबा अलमस्त जी के साथ मारपीट कर के यहां से खदेड़ दिया व अपनी योग शक्ति से पीपल को जला दिया। उस समय श्री गुरूनानक देव जी की गद्दी पर श्री गुरू हरिगोबिन्द साहिब विराजमान थे। बाबा अलमस्त जी ने उनके चरणों में ध्यान जोड़ के प्रार्थना की। गुरू जी ने अरदास परवान कर कुछ सिहों को अपने साथ लिया व श्री अमृतसर साहिब से यहां पहुंचे। गुरू जी का संत सिपाही रूप देख के सिद्भ डर कर भाग गये।
गुरू जी ने जल में केसर मिला कर पीपल पर छीटे मारे। गुरू जी की कृपा से सूखा हुआ पीपल पुनः हरा भरा हो गया। इस स्थान के साथ गुरू जी के चरणछोह प्राप्त अन्य स्थान गुरूद्वारा दूध वाला कुंआ, गुरूद्वारा छेवीं पात शाही गुरूद्वारा श्री भंडारा साहिब, बाउली साहिब है। गुरू जी ने सिद्धों योगियों के साथ ज्ञान गोष्ठी की व उनके बाहरी आडंबर व दिखावे का खंडन किया। गुरू जी ने उन्हें संसार में रहते हुए संसार से निरलेप रहकर वाहिगुरू ( ईश्वर ) को पाने का उपदेश दिया। इस स्थान से धरती से आवाज आई, नानकमत्ता, नानकमत्ता, नानकमत्ता। इसीलिए इस स्थान का नाम नानकमत्ता है। देश देशांतर से संगत आकर इस पवित्र गुरू स्थान पर दर्शन व सेवा करती है। श्रद्धालुओं की मनोकामनायें पूरी होती हैं।
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श्री दूधवाला खोह साहिब गुरुद्वारा-
श्री दूधवाला खोह साहिब गुरुद्वारा श्री नानकमत्ता से लगभग 500 मीटर की दुरी पर स्थित है। इस स्थान में रहने वाले योगियों के पास बड़ी संख्या में भैस थे। भाई मर्दाना को इतनी अत्यधिक भैंस होने के कारण आश्चर्य हुआ कि उसे पीने के लिए कुछ दूध तो मिल सकता है। गुरुनानक जी जो कि आसन बनाकर अच्छी तरह से दिवार के समीप बैठे हुए थे, उन्होंने योगियों से संपर्क करने के लिए पूछा कि क्या वे उसे थोडा-सा दूध पीने के लिए दे सकते है। जैसे ही भाई मर्दाना योगियों के पास दूध मांगने के लिए गया तो योगियों ने भाई मर्दाना को दूध देने से मना कर दिया क्यूंकि भाई मर्दाना नीची जाति का था और योगियों ने उसे अपने गुरु से दूध प्राप्त करने के लिए कह कर, उसे ताना मार दिया।
फिर गुरुनानक ने अपनी आध्यात्मिक शक्तियों के आधार पर योगियों के भैंसों से सभी दूध खीच लिया और उसे एक कुएं में जमा कर दिया। यह सब देखकर सभी योगी चकित हो गए और कुछ दूध मांगने के लिए गुरुनानकजी से विनती करने लगे। गुरुनानक जी ने सारे योगियों को दूध पीने का अवसर दिया और सभी योगी ने अच्छी तरह से कुए से दूध पिया लेकिन कुआं दूध से वैसा ही भरा था। सारे योगी समझ गए कि गुरुनानक जी को भगवान ने भेजा है और तब से कुऐ को दूध वाला खोह (कुआं) कहा जाने लगा है। इस खूबसूरत गुरुद्वारे की छोटी संगमरमर संरचना, हरे भरे क्षेत्रों और बागों के बीच से बढ़ती है। यह स्थान ऐतिहासिक कुएं के साथ गुरुद्वारा की भी एक विशेष महत्व है।
श्री भंडारा साहिब नानकमत्ता गुरुद्वारा-
श्री भंडारा साहिब नानकमत्ता गुरुद्वारे की कहानी कुछ इस तरह है कि योगी नहीं चाहते थे कि स्थानीय लोगों को उनकी श्रेष्ठता को चुनौती देने के लिए शिक्षित हो। नकली रहस्यमय शक्तियों का उपयोग करके योगियों ने गरीब लोगों का सफलतापूर्वक शोषण किया और उनकी अच्छी प्रकृति और अज्ञानता का फायदा उठाया। गुरु नानक ने योगियों को उनकी शिक्षा को बाटने के लिए प्रोत्साहित किया। हालांकि योगीयो ने गुरु नानक का परीक्षण करने का फैसला किया और उन्होंने गुरु नानक को एक तिल का बीज दिया और उनसे हर किसी के साथ बाटने के लिए कहा गुरु नानक ने भाई मर्दाना को तिल के बीज को दूध में पीसने के लिए कहा और वो दूध सभी को दे दिया।
फिर, गुरु नानक ने पूछा कि क्या सभी को अपना हिस्सा मिला योगीयों के पास बोलने के लिए कोई शब्द नहीं थे और फिर बाद में योगियों ने गुरु नानक जी से कई प्रकार के खाद्य पदार्थों की मांग की गुरु नानक जी के निर्देशों पर भाई मर्दाना एक बरगद के पेड़ पर चढ़ गए और बरगद के पेड की शाखाओं को जोरदार रूप से हिलाकर रख दिया योगी आश्चर्य हो गए कि बरगद के पेड से विभिन्न प्रकार के खाद्य सामग्री गिर गए और उस खाद्य सामग्री से योगियों और भाई मर्दाना की भूख मिट गयी। इस चमत्कार को देखकर सारे योगी आश्चर्य चकित हो गए हो और वह सभी गुरु नानक जी के मार्गदर्शक का पालन करने लगे।
उम्मीद करते हैं कि आपको यह पोस्ट पसन्द आयी होगी।
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