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भारत छोड़ो आन्दोलन

भारत छोड़ो आन्दोलन




अगस्त 1942 में उत्तराखण्ड में भी जगह - जगह पर प्रदर्शन व हड़ताले हुई। देघाट ( अल्मोड़ा ) में पुलिस ने आन्दोलनकारियों पर गोलियां चलाई जिसमें हीरामणि, हरिकृष्णा, बद्रीदत्त व काण्डपाल शहीद हो गए।  

● अल्मोड़ा के धामध्यो ( सालम ) में 25 अगस्त, 1942 को सैना व जनता के बीच पत्थर व गोलियों का युद्ध हुआ।इस संघर्ष में दो प्रमुख नेता टीका सिंह व नरसिंह धानक शहीद हुए थे। 
 
● सालम की भाँति सल्ट क्षेत्र में भी 5 सितम्बर सन् 1942 को खुमाड़ नामक स्थान पर, जो कि सल्ट कांग्रेस का मुख्यालय था, ब्रिटिश सेना ने जनता पर गोलियां चलाई और गंगाराम तथा खीमादेव नामक दो सगे भाई शहीद हो गये। गोलियों से बुरी तरह घायल चूड़ामणि और बहादुर सिंह कुछ दिन बाद शहीद हुए।  

● स्वाधीनता आन्दोलन में सल्ट की भूमिका के लिए इसे महात्मा गाँधी ने ' कुमाऊँ का बारदोली ' की पदवी से विभूषित किया था। आज भी खुमाड़ में प्रत्येक वर्ष 5 सितम्बर को शहीद स्मृति दिवस मनाया जाता है। 

● भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान नैनीताल व चमोली के डाक बंगले और कई सरकारी इमारतें जलाई गयीं। गढ़वाल के आन्दोलन से ब्रिटिश सरकार सकते में आ गईं। 

● स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान सिलांगी ( गढ़वाल में सदानंद कुकरेती ने राष्ट्रीय विद्यालय खोला, देवकी नंदन पांडेय एवं भागीरथ पांडेय ने ताड़ीखेत में प्रेम विद्यालय की स्थापना की। 

महिलाओं की भूमिका-

स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान उत्तराखण्ड की महिलाएं भी सक्रिय रूप से जुड़ी थीं। इस दौरान कुंती वर्मा, पदमा जोशी, कुंतादेवी रावत, दुर्गावती पंत, भागीरथी देवी वर्मा, तुलसी देवी रावत, भिवेडी देवी, भक्ति देवी, भागुली देवी, जानकी देवी, मंगला देवी, रेवती देवी और शकुंतला देवी आदि महिलाएं विशेष रूप से सक्रिय रही।  

● नमक सत्याग्रह के दौरान नैनीताल में विमला, जानकी, भागीरथी, शकुन्तला, सावित्री तथा पदमा जोशी आदि महिलाएं विशेष रूप से सक्रिय रहीं।  

● नमक सत्याग्रह के समय ही अल्मोड़ा के नगरपालिका भवन पर विश्नी देवी साह के नेतृत्व में कुन्ती वर्मा, जीवनी, मंगला व रेवती आदि महिलाओं ने तिरंगा फहराया।  

● स्वतंत्रता आन्दोलन में महिलाओं के बढ़ते योगदान को दबाने के लिए फरवरी 1932 में राज्य की 8 महिलाओं को फतेहगढ़ जेल तथा पद्मा जोशी को लखनऊ जेल में भेजा गया और कुन्ती वर्मा को जिन्दा या मुर्दा पकड़ने का आदेश जारी किया गया। 

● भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान मालती देवी के नेतृत्व में ' देश सेवक संगठन ' से सम्बद्ध विद्या देवी, कुन्ती देवी, सरस्वती, भागीरथी आदि महिलाओं ने रेल सम्पत्ति को काफी क्षति पहुँचायी, जिसके लिए इन महिलाओं को 15-15 वर्ष की सजा सुनाई गयी। 

● 1941 में गांधीजी ने अपनी विदेशी शिष्या सरला बहन, जो कि इंग्लैण्ड मूल की थी और जिनका पूर्व नाम हाइलामन था, जिसको अल्मोड़ा भेजा। उन्होंने कौसानी में लक्ष्मी आश्रम की स्थापना की। इस आश्रम ने कताई - बुनाई के साथ ही महिलाओ को स्वतंत्रता आन्दोलन के लिए भी तैयार करने का कार्य किया। 

● पिथौरागढ़ की तुलसी देवी ने सरला बहन की प्रेरणा से कताई - बुनाई केन्द्र व ऊन गृह उद्योग समिति के माध्यम से निराश्रित महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने का कार्य किया। वह कहती थीं कि 'रोओ नही, आगे बड़ों। 

● लक्ष्मी आश्रम से जुड़ी दो सगी बहनों ( कमला और बसंती ने सर्वोदय के प्रचार - प्रसार में अहम भूमिका निभायी।

● गांधी जी की एक दूसरी विदेशी शिष्या मीरा बहन ने ऋषिकेश में पशुलोक की स्थापना की और महिला जागृति में अपना अमूल्य योगदान दिया। 

पत्र - पत्रिकाओं का योगदान

स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान उत्तराखण्ड से निकलने वाली पत्र - पत्रिकाओं ने जनजागरूकता फैलाने तथा आन्दोलन को व्यापक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 

● अल्मोड़ा के डिबेटिंग क्लब द्वारा 1871 से अल्मोड़ा अखबार साप्ताहिक का प्रकाशन शुरू हुआ। इस अखबार ने राज्य में चल रहे जन आन्दोलन तथा स्वतंत्रता आन्दोलन को नयी दिशा दी। 1918 के होली के अंक में सम्पादक बद्रीदत्त पाण्डेय ने गजल के माध्यम से तात्कालीन कमिश्नर पर प्रहार किया, जिससे पेपर पर जुर्माना लगा दिया गया और पेपर बन्द हो गया। 

● अल्मोड़ा अखबार के बंद होने के बाद सितम्बर 1918 से बद्रीदत्त पाण्डेय ' शक्ति ' नाम से एक साप्ताहिक का प्रकाशन करने लगे। 

● 1901 में देहरादून में कुली बेगार प्रथा के विरुद्ध गठित गढ़वाल यूनियन द्वारा 1905 में देहरादून से पं. गिरिजादत्त नैथानी के सम्पादकत्व में ' गढ़वाली ' नामक अखबार का प्रकाशन शुरू हुआ। अखबार के राष्ट्रवादी तेवर के कारण टिहरी रियासत ने कई चार बन्द करने का प्रयास किया, लेकिन बन्द नहीं हुआ।  

● सन् 1939 में लैन्सडोन से भक्तदर्शन और भैरवदत्त के सम्पादकत्व में प्रकाशित कर्मभूमि तथा 1941 में देहरादून से प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका ' युगवाणी ' ने भी स्वतंत्रता आन्दोलन को गति प्रदान की। 

आजाद हिन्द फौज में योगदान- 

आजाद हिन्द फौज के कुल सैनिकों में से लगभग 12 प्रतिशत ( लगभग 2500 ) सैनिक अकेले उत्तराखण्ड के थे। वुद्धिशरण रावत नेताजी के निजी सहायक तथा पितृशरण रतूड़ी कर्नल थे। सूबेदार लेफ्टिनेंट चन्द्र सिंह नेगी को सिंगापुर स्थित आफिसर्स ट्रेनिंग स्कूल का कमाण्डर नियुक्त किया गया था जबकि मेजर देव सिंह दानू नेताजी के अंगरक्षक बटालियन ( गढ़वाली बटालियन ) के कमाण्डर थे। ज्ञान सिंह विष्ट व महेन्द्र सिंह जैसे वीर युद्ध में शहीद हो गये थे।


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