उत्तराखंड से जुड़ी अनसुनी जानकारी
उत्तराखंड से जुड़ी अनसुनी जानकारी
• 1814 में गढ़वाल और 1815 में कुमाऊँ पर अंग्रेजों के कब्जे के बाद कुमाऊँ जनपद का गठन किया गया और गढ़वाल नरेश से लिये गये क्षेत्र को कुमाऊँ का एक परगना बनाया गया और देहरादून को ( 1817 में ) एक जिला बनाकर सहारनपुर में सम्मिलित कर लिया गया। इस प्रकार अंग्रेजी शासन के आरम्भ में उत्तराखण्ड केवल दो राजनीतिक प्रशासनिक इकाइयों ( कुमाऊँ जनपद और टिहरी रियासत ) में गठित था।
• 1840 में ब्रिटिश गढ़वाल का मुख्यालय श्रीनगर से हटाकर पौढ़ी लाया गया और पौड़ी गढ़वाल नामक नये जनपद का गठन किया गया।
• 1854 में नैनीताल को कुमाऊँ मण्डल का मुख्यालय बनाया गया और 1890 तक कुमाऊं कमिश्नरी में केवल ( कुमाऊं और पौढ़ी गढ़वाल ) दो जिले ही रहे।
• 1891 में कुमाऊं को अल्मोड़ा और नैनीताल नामक दो जिलों में बाँटा गया। यह स्थिति स्वतंत्रता तक बनी रही। अर्थात स्वतंत्रता तक कुमाऊं मण्डल में केवल तीन जिले ( पौढ़ी, अल्मोड़ा और नैनीताल ) तथा एक रियासत ( टिहरी ) थी।
• स्वतंत्रता के बाद। अगस्त 1949 को टिहरी रियासत को कुमाऊं मण्डल के चौथे जिले के रूप में सम्मिलित किया गया।
• 1960 तक मसूरी, चकराता व देहरादून को छोड़ पूरा पर्वतीय क्षेत्र कुमाऊं मण्डल में था।
• सन 1960 में टिहरी जनपद से उत्तरकाशी, पौढ़ी जनपद से चमोली व अल्मोड़ा जनपद से पिथौरागढ़ पृथक करके जनपद बनाये गये।
• 1969 तक देहरादून को छोड़कर उत्तराखण्ड के तत्कालीन 7 जिले कुमाऊँ मंडल में थे।
• सन 1969 में गढ़वाल मण्डल गठित कर पौढ़ी में मण्डल मुख्यालय बनाया गया और टिहरी, पौढ़ी, चमोली व उत्तरकाशी को इसके अधीन रखा गया जबकि नैनीताल, अल्मोड़ा व पिथौरागढ़ को कुमाऊं मण्डल के अधीन रखा गया।
• सन 1975 में देहरादून को मेरठ मण्डल से हटाकर गढ़वाल मण्डल में सम्मिलित कर दिया गया।
• 28 दिसम्बर 1988 को हरिद्वार का सृजन हुआ। राज्य गठन के बाद इसे सहारनपुर मण्डल से हटाकर गढ़वाल मण्डल में सम्मिलित कर लिया गया।
• 26 दिसम्बर 1995 को ऊधमसिंह नगर, 15 सितम्बर 1997 को चम्पावत, 18 सितम्बर 1997 को रुद्रप्रयाग और बागेश्वर जनपद बनाये गये।
कोई टिप्पणी नहीं:
टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.