उत्तराखंड का इतिहास प्रागैतिहासिक काल
उत्तराखंड का इतिहास प्रागैतिहासिक काल
प्रागैतिहासिक काल-
प्राक + ऐतिहासिक = प्रागैतिहासिक
( व्यंजन संधि )
इतिहास से पूर्व का युग।
प्रागैतिहासिक काल इतिहास से पूर्व का वह समय जब मनुष्य ने पड़ना- लिखना नहीं सीखा था। और नाही किसी भाषा का विकास हो पाया था। यानी आदिमानव वाला समय जिसे हम 3000 ईसवीं पूर्व से पहले का समय मानते है।
उत्तराखंड की उस समय की भौगोलिक स्थिति पर गौर करे तो उसमें यह समझा जा सकता है कि उत्तराखंड आदिमानव के रहने के लिए उस समय की बहुत अच्छी जगह होगी क्योंकि उत्तराखंड में अलग - अलग प्रकार के जंगल है। जिन्हें उन्हें इनसे खाने के लिए कन्दमूल, फल आदि उन्हें आसानी से खाने के लिए मिल जाते थे। पानी इतनी मात्रा में है कि हर 10 से 15 किलोमीटर के बीच में पानी की नदी है। और बड़े - बड़े पहाड़ है जिनमें रहने के लिए गुफाएं व शैलाश्रय आसानी से मिल जाया करते थे।
उत्तराखंड का प्रागैतिहासिक काल-
लाखु गुफा-
1963 में लाखु उड्यार ( गुफा ) की खोज हुई , जो अल्मोड़ा के बाड़ेछीना के पास दलबैंड पर स्थित हैं , यहाँ मानव और पशुओं के चित्र प्राप्त हुए हैं , चित्रों को रंगों से भी सजाया गया हैं।
ग्वारख्या गुफा-
चमोली में अलकनंदा नदी के किनारे डुग्री गाँव के पास स्थित इस गुफा में मानव , भेड़ , बारहसिंगा आदि के रंगीन चित्र मिले हैं।
किमनी गाँव-
चमोली के पास थराली के पास स्थित इस गाँव के गुफ़ाओं में सफ़ेद रंग से चित्रित हथियार व पशुओं के चित्र मिले हैं।
मलारी गाँव-
चमोली में तिब्बत से सटे मलारी गाँव में 2002 में हजारों साल पुराने नर कंकाल , मिट्टी के बर्तन, जानवरों के अंग और 5.2 किलोग्राम का एक सोने का मुखावरण मिला। गढ़वाल विश्वविद्यालय के द्वारा सन् 2002 में मलारी गाँव के प्रागैतिहसिक पुरातत्वस्थल की खुदाई कराई गई।
ल्वेथाप-
अल्मोड़ा के ल्वेथाप से प्राप्त चित्र में मानव को शिकार करते तथा नृत्य करते हुए दिखाया गया हैं।
हुडली-
उत्तरकाशी के हुडली से प्राप्त शैल चित्रों में नीले रंग का प्रयोग किया गया हैं।
पेटशाला-
अल्मोड़ा के पेटशाला व पुनाकोट गाँव के बीच स्थित कफ्फरकोट से प्राप्त चित्रों में नृत्य करते हुए मानवों की आकृतियाँ प्राप्त हुई हैं।
फलासीमा-
अल्मोड़ा के फलसीमा से प्राप्त मानव आकृतियों में योग व नृत्य करते हुए दिखाया गया हैं।
बनकोट-
पिथौरागढ़ के बनकोट से 8 ताम्र मानव आकृतियां मिली हैं।
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