उत्तराखंड गढ़वाल के प्रमुख मेलें
उत्तराखंड गढ़वाल के प्रमुख मेलें
नमस्कार दोस्तों आज हम आपको अपनी इस पोस्ट में उत्तराखंड गढ़वाल के प्रमुख मेलों के बारे में बताएंगे।
गढ़वाल के प्रमुख मेलें-
देहरादून के प्रमुख मेलें-
1. झंडा मेला-
झंडा मेला देहरादून में प्रतिवर्ष होली के 5 वें दिन बाद आयोजित होता है। यह मेला सिक्ख गुरु रामराय जी के जन्मदिवस पर प्रारम्भ होता है जो कि 15 दिनों तक चलता है। इसी दिन गुरु राम राय जी का आगमन देहरादून में हुआ। गुरु राम राय देहरादून में 1676 में आये थे। इस मेले में पंजाब के कई भक्त देहरादून आते हैं जिन्हें ' संगत ' कहते हैं।
2. नुणाई मेला-
नुणाई मेला देहरादून के जौनसार ( चकराता ) में श्रावण मास को आयोजित किया जाता है।
3. टपकेश्वर मेला-
टपकेश्वर मेला देहरादून में देवधारा नदी के किनारे एक गुफा में स्थित शिव मंदिर में लगता है। इस गुफा में एक शिवलिंग है जिसमें पानी की बूंदे एक चट्टान से टपकती हैं। इसलिये इस मंदिर का नाम टपकेश्वर मंदिर है।
4. भद्रराज मेला-
भद्रराज मेला देहरादून के मसूरी से 15Km दून भद्रराज मन्दिर में आयोजित किया जाता है। यह मंदिर भगवान बालभद्र को सपर्पित है।
टिहरी गढ़वाल के प्रमुख मेले-
1. रण भूत कौथिग मेला-
रण भूत कौथिग मेला टिहरी जनपद के नैलचामी पट्टी के ठेला गांव में कार्तिक माह को आयोजित किया जाता है। यह मेला राजशाही के समय विभिन्न युद्धों में मारे गये लोगों की याद में लगता है। यह मेला ' भूत ' नृत्य के रूप में जाना जाता है।
2. चन्द्रबदनी मेला-
चन्द्रबदनी मेला गढ़वाल के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक चन्द्रबदनी मन्दिर में प्रतिवर्ष अप्रैल माह में लगता है।
3. विकास मेला-
विकास मेले का आयोजन टिहरी गढ़वाल में प्रतिवर्ष किया जाता है इसे विकास प्रदर्शनी भी कहा जाता है।
हरिद्वार के प्रमुख मेले-
1. कुंभ मेला-
कुंभ मेला हिन्दू धर्म का महत्वपूर्ण मेला है। यह मेला हरिद्वार में गंगा के तट पर प्रत्येक बारहवें वर्ष आयोजित होता है। यह मेला सूर्य के मेष राषि में तथा बृहस्पति के कुंभ राशि में आने पर आयोजित होता है।
2. उर्स मेला-
उर्स मेला रुड़की से 8Km दूर कलियर गांव में प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता है। कलियर गांव में पिरान कलियर बाबा ( अलाउद्दिन अली अहमद साबरी ) की मजार (दरगाह) है।
चमोली के प्रमुख मेले-
1. गोचर मेला-
गोचर का यह मेला चमोली जनपद के गोचर में लगता है। यह उत्तराखंड का प्रसिद्ध ऐतिहासिक ब्यवसायिक मेला है। इस मेले की शुरुआत 1943 में तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर बर्नेडी ने की इस मेले का आयोजन 14-20 नवम्बर को होता है।
2. हरियाली पूड़ा मेला-
हरियाली पूड़ा मेला चमोली जनपद के नोटी गांव में चैत्रमास के पहले दिन लगता है। यह मेला मुख्य रूप से ध्याणियों ( विवाहित कन्याओं ) का उत्सव होता है क्योंकि इस गांव के लोग नंदादेवी को ध्याणी मानते हैं।
3. तिमुण्डा मेला-
तिमुण्डा मेला प्रतिवर्ष चमोली जनपद के जोशीमठ में नर्सिंग मन्दिर में बद्री नाथ के कपाट खुलने से पूर्व आयोजित किया जाता है। प्रसिद्धि - तिमुण्डा वीर का पश्वा बकरी का कच्चा मांस , कच्चा चावल , गुड़ व तीन घड़े पानी पी जाता है। लोकमान्यताओं के अनुसार इस गांव में तिमुण्डा राक्षस था जो मानवों का भक्षण करता था। यहाँ के लोगों ने मां दुर्गा से सहायता मांगी। मां दुर्गा जब इस राक्षस को मारने वाली थी तो यह राक्षस माता की शरण में आ गया। माता ने आदेश दिया कि गांव वाले तुझे प्रतिवर्ष बकरे का मांस , चावल , गुड़ व आदि देंगे।
4. नोठा कौथिग-
यह कौथिग चमोली जनपद के नोठा में आदिबद्री मन्दिर में बैशाख व ज्येष्ठ में लगता है।
पोड़ी गढ़वाल के प्रमुख मेले-
1. बैकुण्ठ चतुर्दशी मेला-
बैकुण्ठ चतुर्दशी का मेला पोड़ी जिले के श्रीनगर गढ़वाल में कमलेश्वर मन्दिर में प्रतिवर्ष बैकुण्ठ चतुर्दशी को लगता है। कमलेश्वर मन्दिर में दंपति रात भर हाथ मे दिया लिये संतान प्राप्ति हेतु पूजा अर्चना करती हैं। इस मंदिर में भगवान राम ने रावण को मारने के बाद पूजा की थी।
2. गिन्दी मेला ( गेंदी मेला )-
गिन्दी मेला ( गेंदी मेला ) यह मेला मकर सक्रांति के अवसर पर पोड़ी जनपद के यमकेश्वर ब्लॉक में डांडामंडी में ' भटपूड़ी देवी ' के मंदिर में लगता है। इस मेले में गेंद के लिये छीना झपटी होती है जो पक्ष गेंद को छीनने में सफल होता है वह विजयी होता है।
3. दनगल मेला-
दनगल मेला पोड़ी जनपद के सतपुली के पास दनगल के शिव मंदिर में प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि को लगता है।
4. भुवनेश्वरी देवी मेला
उत्तरकाशी के प्रमुख मेले-
1. माघ मेला-
माघ मेला उत्तरकाशी में प्रतिवर्ष जनवरी माह मकर सक्रांति से शुरू होता है। यह मेला 8 दिन तक चलता है। इस मेले में कँडार देवता की डोली के साथ - साथ अन्य देवी देवताओं की डोली पहुंचती है।
2. बिस्सू मेला-
बिस्सू मेला प्रतिवर्ष उत्तरकाशी के भुटाणु , टिकोची , किरोलो व देहरादून के चकराता , जौनसार - बाबर क्षेत्र में आयोजित किया जाता है। यह मेला प्रतिवर्ष विषुवत संक्राति के दिन लगता है। इसलिए इसे बिस्सू मेला कहा जाता है। इस युद्ध में ठोटा युद्ध ( धनुष बाणों का युद्ध ) खेला जाता है। व ठोटा युद्ध में भाग लेने वाले प्रतिभागियों को ' ठोटेरी'.कहा जाता है।
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