उत्तराखंड में लोकपर्व हरेला क्यों मनाया जाता है?
उत्तराखंड में लोकपर्व हरेला क्यों मनाया जाता है?
नमस्कार दोस्तों आज हम आपको अपनी इस पोस्ट में यह बताएंगे कि उत्तराखंड में लोकपर्व हरेला क्यों मनाया जाता है?
जी रया ,जागि रया ,
यो दिन बार, भेटने रया,
दुबक जस जड़ हैजो,
पात जस पौल हैजो,
स्यालक जस त्राण हैजो,
हिमालय में ह्यू छन तक,
गंगा में पाणी छन तक,
हरेला त्यार मानते रया,
जी रया जागी रया।
उत्तराखंड में हरेला चढ़ाते समय बड़े- बुजुर्गो द्वारा आशीर्वाद कुछ इस प्रकार दी जाती है, और यह गीत गाया जाता है।
हरेला क्या है ?
उत्तराखंड में मनाए जाने वाले लोक त्यौहारों में से हरेला पर्व एक प्रमुख त्यौहार है। यह लोक पर्व हर साल कर्क संक्रान्ति को मनाया जाता है। अंग्रेजी तारीख के अनुसार , यह त्यौहार हर वर्ष 16 जुलाई को होता है। लेकिन कभी - कभी इसमे एक दिन का अंतर हो जाता है। हरेला प्रकर्ति संरक्षण पर जोर देता है। ऋतुओं के स्वागत का त्यौहार है हरेला।
उत्तराखंड लोकपर्व हरेला का इतिहास एवं महत्व-
उत्तराखंड की धरती पर ऋतुओं के अनुसार अनेक पर्व मनाये जाते हैं। ऐसे ही पर्वो में से एक है हरेला। हरेला शब्द का तात्पर्य हरियाली से है। यह पर्व वर्ष में तीन बार आता है, पहला चैत्र मास में , दूसरा श्रावण मास में और तीसरा वर्ष का आखिरी पर्व हरेला अश्विन मास में मनाया जाता है।
उत्तराखंड के लोगों द्वारा श्रावण मास में पड़ने वाले हरेला को अधिक महत्व दिया जाता है क्योंकि श्रावण मास शंकर भगवान जी को विशेष प्रिय है। और हरेला मनाने से घर मे सुख समृद्धि व शांति आती है ऐसा माना जाता है। यह त्यौहार उत्तराखंड के कुमाऊँ की तरफ अधिक मनाया जाता है।
हरेला पर्व कैसे मनाया जाता है ?
उत्तराखंड में सावन लगने से नौ दिन पहले पांच या सात प्रकार के अनाज के बीजों को एक छोटी टोकरी में मिट्टी डाल कर बोया जाता है। इसे सूर्य की सीधी रोशनी से बचाया जाता है और प्रतिदिन सुबह पानी से सींचा जाता है।
9 वें दिन इसकी पाती की टहनी से गुड़ाई की जाती है और दसवें दिन यानी हरेला के दिन इसे काटा जाता है। और विधि- विधान अनुसार घर के बुजुर्ग सुबह पूजा पाठ करके हरेले को देवताओं को चढ़ाते हैं। उसके बाद घर के सभी सदस्यों को हरेला लगाया जाता है। हरेला घर मे सुख -शांति व समृद्धि के लिए बोया और काटा जाता है।
हरेला अच्छी फसल का सूचक है , हरेला इस कामना के साथ बोया जाता है कि इस साल फसलों को नुकसान न हो यह भी मान्यता है कि जिसका हरेला जितना बड़ा होगा उसे कृषि में उतना ही फायदा होगा वैसे तो हरेला घर - घर में बोया जाता है।
लेकिन किसी - किसी गांव में हरेला पर्व को सामुहिक रूप से स्थानीय ग्राम देवता के मंदिर में भी मनाया जाता है। गांव के लोगों द्वारा मिलकर मन्दिर में हरेला बोया जाता है और सभी लोगों द्वारा इस पर्व को हर्षोल्लास से मनाया जाता है।
क्यूँ खास है श्रावण में मनाया जाने वाला हरेला ?
सावन का महीना हिन्दू धर्म मे पवित्र महीनों में से एक माना जाता है। यह महीना भगवान शिव को समर्पित है। और भगवान शिव को यह महीना अत्यधिक पसंद भी है। इसीलिये यह त्यौहार भी भगवान शिव परिवार को समर्पित है। और उत्तराखंड की भूमि को तो शिव भूमि ( देव भूमि ) भी कहा जाता है।
क्योंकि भगवान शिव का निवास स्थान यहीं देवभूमि कैलाश ( हिमालय ) में ही है। इसीलिए श्रावण मास के हरेले में भगवान शिव परिवार की पूजा - अर्चना की जाती है। शिव , माता पार्वती और भगवान गणेश की मूर्तियां शुद्ध मिट्टी से बनाकर उन्हें प्राकृतिक रंग से सजाया सवारा जाता है। जिन्हें स्थानीय भाषा में डिकारे कहा जाता है। हरेले के दिन इन मूर्तियों की पूजा अर्चना हरेले से की जाती है। और इस पर्व को भगवान शिव और माँ पार्वती के विवाह के रूप में भी मनाया जाता है।
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