कलबिष्ट देवता की कहानी
कलबिष्ट देवता की कहानी
नमस्कार दोस्तों आज हम आपको अपनी इस पोस्ट में उत्तराखंड के भूतांगी देवता कलबिष्ट देवता के बारे में बतायेंगे।
कलबिष्ट देवता उत्तराखंड के भूतांगी देवता में से एक है, जिन्हें पीड़ितों का सहायक देवता माना जाता है। जनश्रुति के अनुसार कलबिष्ट देवता का जन्म कुमाऊँ के बिनसर के निकटवर्ती गाँव कोट्यूड़ा में हुआ था। श्री बद्रीदत्त पांडेय जी की पुस्तक कुमाऊँ का इतिहास में उनके पिताजी का नाम केशव बिष्ट था तथा उनकी माता का नाम दुर्पाता था और कलबिष्ट देवता का नाम श्री कल्याण सिंह बिष्ट था।
कलबिष्ट देवता मानव योनि में वीर रंगीले जवान थे वह राजपूत होने के बावजूद भी ग्वाले का काम करते थे। वह बिनसर के जंगलों में गाय व भैंस चराने का काम करते थे, लोकगाथा के अनुसार कलबिष्ट (कलुवा) प्रतिदिन बिनसर में सिद्ध गोपाली नाथ नामक व्यक्ति के वंहा दूध देने जाते थे। जिनके पड़ोस में श्री कृष्ण पांडेय नामक व्यक्ति जो राजा का दरबारी था, उसका भी घर था कलबिष्ट (कलुवा) का वहा भी आना जाना था।
श्री कृष्ण पांडेय का किसी नौलखिया पांडेय से बैर भाव था, श्री कृष्ण पांडेय व कलबिष्ट (कलुवा) के बीच फुट डालने के लिए नौलखिया पांडेय ने श्री कृष्ण पांडेय की पत्नी और कलबिष्ट (कलुवा) के बीच अवेध संबंध की झूठी कहानी लोगो तक प्रचारित कर दी। जिसके कारण श्री कृष्ण पांडेय क्रोध में आकर उन्होंने कलबिष्ट (कलुवा) की हत्या कराने की योजना बनाई। किन्तु उनकी वीरता और साहस के आगे कोई उन्हें मार तक नहीं पाया।
इसी बीच कलबिष्ट (कलुवा) ने अल्मोड़ा के राजदरबार में उस समय के सबसे शक्तिशाली योद्धा जय सिंह टम्टा को मल युद्ध मे हराकर राजा के सामने अपनी धाक जमा दी, इससे कई दरबारी उनसे द्वेश भाव रखते थे। और उन्हें राजा की नजरों से दूर रखना चाहते थे, तदनुसार दरबारियों एवं श्री कृष्ण पांडेय की प्रेणा से राजा का एक दरबारी पालीपछाव के दयाराम पछाईं के प्रस्तावना स्वरूप राजा ने कलबिष्ट (कलुवा) को अपनी भैंसे चौरासी माल के जंगलों में चरने के लिए ले जाने की आज्ञा दी।
वंहा जंगल में कलबिष्ट (कलुवा) का सामना मुगल सेना से हुआ और कलबिष्ट (कलुवा) ने समस्त सेना को मारकर उन पर विजय प्राप्त करी। पुनः कलबिष्ट (कलुवा) भैसों को लेकर चौरासी माल के घने जंगलों में ले गया और वंहा उसने चौरासी शेरों को मारकर पशु पालकों के लिए वह जंगल उसने अभय बना दिया। उसके बाद कलबिष्ट (कलुवा) भैसों को लेकर वापस गाँव आ गया।
चौरासी जंगलों से भैसों सहित कलबिष्ट (कलुवा) को वापस सकुसल देखकर श्री कृष्ण पांडेय और दयाराम पछाईं आश्चर्यचकित हो गए और तब उसको धोके से मारने के लिए उसके साडू भाई लकड़योड़ी को प्रबोलन दिया लकड़योड़ी ने एक दिन सयंत्र के तहत कलबिष्ट (कलुवा) की एक भेंस के पांव में कील ठोक दी और जब कलबिष्ट (कलुवा) भेंस के पैर से कील निकालने के लिए झुका तो लकड़योड़ी ने कलबिष्ट (कलुवा) की गर्दन काट दी पर कलबिष्ट (कलुवा) ने प्राण त्यागने से पहले लकड़योड़ी को भी मार दिया।
बताया जाता है कि लकड़योड़ी के इस पाप के कारण उसके सम्पूर्ण वंश का ही नाश हो गया था। मरणोपरांत कलबिष्ट (कलुवा) प्रेत योनि में चला गया और प्रेत बनकर उन्होंने सर्वप्रथम अल्मोड़ा स्थित पांडेय खोला के श्री कृष्ण पांडेय के पुत्र को आक्रांत किया पूछताछ करने पर जब कलबिष्ट (कलुवा) के प्रेत बनने की बात सामने आई तो श्री कृष्ण पांडेय ने कपड़खान में उनका मंदिर बनवाया जंहा पर कलबिष्ट (कलुवा) के नाम से उनकी पूजा अर्चना आरम्भ हुई।
श्री कृष्ण पांडेय व दयाराम पछाईं के कारण कलबिष्ट (कलुवा) का सर्वाधिक प्रभाव पांडेय कुल और पालीपछाव में पाया जाता है। पालीपछाव के फलदाकोट नामक स्थान पर उनकी पूजा के नृत्य जागर लगायें जाते है। और वह पशुवा में अवतरित होकर नृत्य भी करते है। कलबिष्ट (कलुवा) देवता उत्तराखंड के एक शक्तिशाली देवता है।
जय कलबिष्ट (कलुवा) देवता
जय गोलू देवता
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