Ads Top

एड़ी देवता की कहानी

एड़ी देवता की कहानी

नमस्कार दोस्तों आज हम आपको अपनी इस पोस्ट में एड़ी देवता की कहानी के बारे में बतायेंगे।

उत्तराखंड के कुमाऊँ के जमींदारो में एक जाति एड़ी या एडी है, इस जाति में एक मनुष्य बड़ा बलवान अकस्मात बलि हो गया। उसको शिकार खेलने का बहुत शौक था जब वो मरा भूत हो गया और भटकने लगा बच्चों और स्त्रियों में चिपटने लगा। और उनके बदन में नाचने लगा तब कहने लगा वो एड़ी है। उसको हलवा, पूरी, बकरा चड़ाके पूजा जाए तो वह बच्चों और स्त्रियों को छोड़ देगा। इस प्रकार लोग एड़ी को एड़ी देवता के रूप में पूजने लगे।



एड़ी देवता संबंधित लोकगीतों के अनुसार इनका मूलस्थान ब्यानधुरा नामक पर्वत शिखर पर है, जो कि चम्पावत जिले में स्थित इनका मंदिर है, मंदिर में ना ही कोई छत और कलश है केवल त्रिशूल और धनुष बाणो के ढेर है, एड़ी मुख्य रूप से कुमाऊँ में पशु पालकों का देवता हैं।

कुमाऊँ में प्रचलित धार्मिक गाथाओं के अनुसार एड़ी देवता एक अल्हड़ प्रवित्ति के आखेड़ प्रिय देवता है। जो आज भी शिकार के लिए धनुष बाण लेकर अपने कुत्तों सहित पर्वतों चोटी में घूमते है।

मानव रूप में इनका नाम त्युना तथा इनके भाई का नाम ब्यूना था। लेकिन तब भी ये अपने साथ कठुआ नामक कुत्ता और झपुआ नामक बाज़ को वनों में ले जाकर वँहा धनुष बाण से शिकार किया करते थे।

एक दिन ड्यूना की माँ के गन्दे सपने देखने के कारण त्युना की माँ ने त्युना को वनों में शिकार पर जाने के लिए मना किया परन्तु त्युना के हटी होने के कारण वह अपने कुत्तें और बाज़ को साथ लेकर पिपलिकोट, कातियाचाण्डा और कटारीबधान के वनों की ओर चल दिया। 

वन में शिकार की तलाश में थक जाने के कारण त्युना एक पैर में कठुआ कुत्ता और दूसरे पैर में झपुआ बाज़ को रस्सी से बांध कर एक वृक्ष की छाया में सो गया तभी वंहा से हिरणों का झुंड गुजरा जिससे कुत्ता और बाज़ उन्हें देख कर उन पर झपटने के लिए एक दूसरे की विपरीत दिशा में दोड़ पड़े जिससे विपरीत जाने के कारण त्युना के पैर रस्सी से खिंचने से टूट गए और उनकी मृत्यु हो गयी। और इस प्रकार अकाल मृत्यु हो जाने के कारण वह प्रेत योनि में चला गया।

लोक विश्वास है कि एड़ी देव की मनुष्य योनि में पैर टूट जाने के कारण उनकी प्रेतआत्मा पालकी में चलती है। एक गाथा के अनुसार त्युना और ब्युना दोनों भाई क्रमशः अर्जुन और युधिष्ठिर के अवतार थे।

कुमाऊँ में एड़ी की पूजा का निश्चित विधान है अधिशंख्य गाँव में जातुड़ा तथा बेईसी के समय एड़ी देवता अपने डंगरिये में अवतरित होकर नृत्य करते है, ब्यानधुरा में भी नवरात्र के समय वँहा जागर लगाई जाती है और डंगरिये में अवतरित एड़ी देवता सभी की मनोकामना पूर्ण करने है।
इसी प्रकार यहां कार्तिक पूर्णिमा के दिन संतानहीन महिलाये यहां हाथ में प्रव्जल्लित दिये को हाथ मे लेकर एड़ी देवता के आसन के चारों ओर ध्यान लगा कर बैठती है, और अपनी संतान के लिए मनोकामना मांगती है।

जब ढोली जागर गाता है तब डंगरिये पर अवतरित एड़ी देवता द्वारा महिलाओं को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद दिया जाता है। मनोकामना पूर्ण होने के बाद लोग एड़ी देवता को धनुष बाण और त्रिशूल आदि सब चढ़ाते है। एड़ी देवता के मंदिर कुमाऊँ में मुख्यतः पर्वत चोटी या टीले में स्थित होते है।



जय एड़ी देवता।
जय गोल्ज्यू देवता।


कोई टिप्पणी नहीं:

टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.

Blogger द्वारा संचालित.