शिवरात्रि का महत्व और शिव अवतरण का आधार
शिवरात्रि का महत्व और शिव अवतरण का आधार
आध्यात्मिक अर्थ में ' रात्रि ' शब्द घोर कलियुग का प्रतीक है।
आज संसार में चारों ओर चिन्ता , भय और निराशा का वातावरण है।
मनुष्य विकारों की अग्नि में तप रहे हैं।
प्राणी मात्र पर दुखों और प्राकृतिक आपदाओं का पहाड़ टूट रहा है।
गीता में लिखे धर्मग्लानी के सभी चिन्ह दिखाई दे रहे हैं।
महापरिवर्तन की पूरी तैयारी हो चुकी है।
इसी समय परमात्मा शिव एक साधारण तन में अवतरित होकर नई सृष्टि की स्थापना का महान कार्य कर रहे हैं।
शिवरात्रि पर्व परमात्मा के इस पहान कर्तव्य कायादगार पर्व है।
परमपिता परमात्मा शिव का संक्षिप्त परिचय
परमात्मा का स्व उद्घटित नाम शिव है जिसका अर्थ है कल्याणकारी।
वे सृष्टि की सभी आत्माओं के परमपिता , परमशिक्षक एवं परमसतगुरु हैं।
ज्योतिस्वरूप होने के कारण उन्हें निराकार कहा जाता है। वे सूर्य , चंद्र , तारागण से पार ब्रह्म तत्व में निवास करते हैं।
ब्रह्मा , विष्णु और शंकर द्वारा तीन दिव्य कर्त्तव्य करते हैं इसलिए उन्हें त्रिमूर्ति शिव कहते हैं।
वे सृष्टि के आदि , मध्य , अंत को जानने वाले हैं तथा पतितों को पावन बनाने वाले हैं।
अतः हे शिव के भक्तो , जिसे पाने के लिए आपने जन्म - जन्मांतर भक्ति की , अब वे इस धरा पर आ चुके हैं । उन्हें पहचानो और भक्ति का फल सतयुगी स्वर्ग का द्वारा खोलने की स्वर्णिम चाबी प्राप्त करो ।
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