उत्तराखंड का गंगोत्री धाम मंदिर
उत्तराखंड का गंगोत्री धाम मंदिर
उत्तराखंड का गंगोत्री धाम मंदिर गंगा नदी का उद्गम स्थल है। जंहा गंगोत्री से गौमुख 19 किमी दूर स्थित है जंहा से भागीरथी नदी निकलती है, माँ गंगा जी का मंदिर, समुद्र तल से 3042 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। भागीरथी के दाहिने ओर का परिवेश अत्यंत आकर्षक एवं मनोहारी है।
उत्तराखंड का गंगोत्री धाम मंदिर उत्तरकाशी से 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गंगा मैया के मंदिर का निर्माण गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा द्वारा 18 वी शताब्दी के शुरूआत में किया गया था वर्तमान मंदिर का पुननिर्माण जयपुर के राजघराने द्वारा किया गया था। प्रत्येक वर्ष मई से अक्टूबर के महीनो के बीच पतित पावनी गंगा मैंया के दर्शन करने के लिए लाखो श्रद्धालु तीर्थयात्री यहां आते है। यमुनोत्री की ही तरह गंगोत्री का पतित पावन मंदिर भी अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर खुलता है और दीपावली के दिन मंदिर के कपाट बंद होते है।
गंगोत्री मंदिर |
उत्तराखंड का गंगोत्री धाम मंदिर की बनावट
उत्तराखंड का गंगोत्री धाम मंदिर पवित्र एवं उत्कृष्ठ मंदिर सफेद ग्रेनाइट के चमकदार 20 फीट ऊंचे पत्थरों से निर्मित है, दर्शक मंदिर की भव्यता एवं शुचिता देखकर सम्मोहित हुए बिना नहीं रहते।
यहाँ पर शिवलिंग के रूप में एक नैसर्गिक चट्टान भागीरथी नदी में जलमग्न है। यह दृश्य अत्यधिक मनोहार एवं आकर्षक है इसके देखने से दैवी शक्ति की प्रत्यक्ष अनुभूति होती है। पौराणिक आख्यानो के अनुसार, भगवान शिव इस स्थान पर अपनी जटाओ को फैला कर बैठ गए और उन्होने गंगा माता को अपनी घुंघराली जटाओ में लपेट दिया। शीतकाल के आरंभ में जब गंगा का स्तर काफी अधिक नीचे चला जाता है तब उस अवसर पर ही उक्त पवित्र शिवलिंग के दर्शन होते हैं।
उत्तराखंड का गंगोत्री धाम मंदिर का इतिहास
उत्तराखंड का गंगोत्री धाम मंदिर का इतिहास 1200 वर्ष पुराना हैं। इसके आस पास का गंगोत्री शहर अब विकसित हो चुका है, इसके पहले भी अनजाने कई सदियों से यह मंदिर हिदुओं के लिये आध्यात्मिक प्रेरणा का श्रोत रहा है। चूंकि पुराने काल में चारधामों की तीर्थयात्रा पैदल हुआ करती थी तथा उन दिनों इसकी चढ़ाई दुर्गम थी इसलिये वर्ष 1980 के दशक में गंगोत्री की सड़क बनी और तब से इस शहर का विकास तेजी गति से हुआ।
उत्तराखंड गंगोत्री धाम मंदिर तथा शहर का इतिहास अभिन्न रूप से जुड़ा है। प्राचीन काल में यहां मंदिर नहीं था गंगोत्री में सेमवाल पुजारियों के द्वारा गंगा माँ के साकार रूप यानी गंगा धारा की पूजा की जाती थी। भागीरथी शिला के निकट एक मंच था जहां यात्रा मौसम के तीन-चार महीनों के लिये देवी-देताओं की मूर्तियां रखी जाती थी इन मूर्तियों को मुखबा आदि गावों से लाया जाता था जिन्हें यात्रा मौसम के बाद फिर उन्हीं गांवों में लौटा दिया जाता था।
गंगोत्री ग्लेशियर |
गढ़वाल के गुरखा सेनापति अमर सिंह थापा ने 18वीं सदी में गंगोत्री मंदिर का निर्माण सेमवाल पुजारियों केेे निवेदन पर उसी जगह जहां भागीरथ ने तप किया था। माना जाता है कि जयपुर के राजा माधो सिंह द्वितीय ने 20वीं सदी में मंदिर की मरम्मत करवायी।
उत्तराखंड का गंगोत्री धाम मंदिर की कहानी
पौराणिक कथाओ के अनुसार भगवान श्री रामचंद्र के पूर्वज रघुकुल के चक्रवर्ती राजा भगीरथ ने यहां एक पवित्र शिलाखंड पर बैठकर भगवान शंकर की प्रचंड तपस्या की थी। इस पवित्र शिलाखंड के निकट ही 18 वी शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण किया गया। ऐसी मान्यता है कि देवी भागीरथी ने इसी स्थान पर धरती का स्पर्श किया।
ऐसी भी मान्यता है कि पांडवो ने भी महाभारत के युद्ध में मारे गये अपने परिजनो की आत्मिक शांति के निमित इसी स्थान पर आकर एक महान देव यज्ञ का अनुष्ठान किया था। यह पवित्र एवं उत्कृष्ठ मंदिर सफेद ग्रेनाइट के चमकदार 20 फीट ऊंचे पत्थरों से निर्मित है। दर्शक मंदिर की भव्यता एवं शुचिता देखकर सम्मोहित हुए बिना नहीं रहते।
शिवलिंग के रूप में एक नैसर्गिक चट्टान भागीरथी नदी में जलमग्न है। यह दृश्य अत्यधिक मनोहार एवं आकर्षक है। इसके देखने से दैवी शक्ति की प्रत्यक्ष अनुभूति होती है। पौराणिक आख्यानो के अनुसार, भगवान शिव इस स्थान पर अपनी जटाओ को फैला कर बैठ गए और उन्होने गंगा माता को अपनी घुंघराली जटाओ में लपेट दिया। शीतकाल के आरंभ में जब गंगा का स्तर काफी अधिक नीचे चला जाता है तब उस अवसर पर ही उक्त पवित्र शिवलिंग के दर्शन होते है।
उत्तराखंड का गंगोत्री धाम मंदिर का आवागमन
वायुमार्ग- देहरादून स्थित जौलीग्रांट निकटतम हवाई अड्डा है। दूरी 226 किमी है। सड़क मार्ग- गंगोत्री ऋषिकेश से बस, कार अथवा टैक्सी द्वारा पहुंचा जा सकता है। यह मार्ग 259 किमी है। गंगोत्री से यमुनोत्री में फूलचट्टी तक की दूरी 8 किमी है तथा बस, कार अथवा टैक्सी द्वारा गंगोत्री तक की दूरी 229 किमी है।
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