गंगनाथ बाबा की कहानी | Gangnath devta ki katha..?
गंगनाथ बाबा की कहानी | Gangnath devta ki katha..?
नमस्कार दोस्तो आप लोगों को हम अपनी इस पोस्ट में बतायेगें कि गंगनाथ बाबा कौन है। और उनकी जीवन गाथा क्या थी ये जानने के लिए दोस्तो पोस्ट को अंत तक जरूर पढ़ें।
दोस्तों गंगनाथ बाबा उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र के मुख्य देवताओं में से एक है, जो कि गोल्ज्यू देवता की ही भांति न्याय के देवता कहलाते है। गंगनाथ बाबा के भी कुमाऊँ में बहुत से मंदिर है।
नमस्कार दोस्तो आप लोगों को हम अपनी इस पोस्ट में बतायेगें कि गंगनाथ बाबा कौन है। और उनकी जीवन गाथा क्या थी ये जानने के लिए दोस्तो पोस्ट को अंत तक जरूर पढ़ें।
दोस्तों गंगनाथ बाबा उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र के मुख्य देवताओं में से एक है, जो कि गोल्ज्यू देवता की ही भांति न्याय के देवता कहलाते है। गंगनाथ बाबा के भी कुमाऊँ में बहुत से मंदिर है।
गंगनाथ बाबा अकेले से ऐसे देवता हैं जिन्हें बुलाने के लिए केवल हुड़का बजाया जाता है।
गंगनाथ बाबा के बारे में कुछ इस तरह कहा जाता हैं कि गंगनाथ बाबा काली नदी के पार डोटिगढ़ (नेपाल) के रहने वाले थे और कांकुर उनकी राजधानी थी। राजा भवेचन्द के वह पुत्र थे। उनकी माता का नाम प्योंला रानी था । वह बचपन से ही सरल स्वभाव के थे तथा उनका राजपाठ , यश , धन और वैभव में कोई रूचि नहीं थी। एक बार गंगनाथ अपने सेवको और राज कर्मचारियों के साथ उत्तरायणी मेला देखने बागेश्वर “बागनाथ” जाते हैं । मेले में उसकी मुलाकात दन्या के किशनानंद जोशी की पुत्री “भाना” से हो जाती हैं और उसके सौंदर्य और स्वभाव को देखकर पहली मुलाकात में ही दोनों को एक दुसरे से प्रेम हो जाता हैं।
राजकुमार गंगनाथ भाना को पाने का स्वप्न देखने लगते हैं। और एक रात्रि में वह स्वप्न में “भाना” को देखते हैं जिसमे “भाना” ने उनसे कहती हैं कि आप संन्यास ले लो और जोगी बन कर अल्मोड़ा जिले में स्थित “दन्या क्षेत्र” में आकर मुझसे मुलाकात करो । तभी हम दोनों का मिलन हो सकेगा। मेरे पिता किशनानंद जोशी अल्मोड़ा राज्य में दीवान हैं और वह वहीं रहते हैं।
अगले दिन गंगनाथ झोला चिमटा लेकर अपना राज्य छोड़ महाकाली नदी पार करके संन्यासी बनने की अभिलाषा लेकर सोर पिथौरागढ़ पहुंच जाते हैं और वहां से राजकुमार गंग काली कुमाऊं होते हुए हरिद्वार पहुंचते हैं और शिव अवतार गुरु गोरखनाथ से सन्यास धर्म की दीक्षा लेते हैं और उन्हें गुरु गोरखनाथ द्वारा दिव्य वस्त्र तथा पीठ भाई गोरिल द्वारा दी गई शक्ति प्रदान हैं | सन्यास धर्म की दीक्षा की शिक्षा प्राप्त कर गंगनाथ साधु वेश में दन्या क्षेत्र में आते हैं और वह भाना के घर के निकट धूनी रमाकर कुटिया बनाकर रहने लगते हैं ।
ऐसे करते करते वह प्रतिदिन चोरी चुपके भाना से मिला करते थे और जल्द ही बहाना गर्भवती हो जाती हैं ग्रामीणों को गंगनाथ और भाना के प्रेम सम्बन्ध का पता चलता हैं तो सभी ग्रामीण लोग उसके पिता किशनानंद जोशी दीवान को मामले की जानकारी देते हैं और जैसे ही किशनानंद जोशी को जब भाना गंगनाथ के प्रेम प्रसंग के बारे में मालूम होता है तो वह भाना , गंगनाथ और वर्मी बाला को मौत के घाट उतारने की योजना बनाता है । लेकिन किशनानन्द जोशी को जब यह पता चलता हैं कि गंगनाथ के शरीर में जब तक बाबा गोरखनाथ के दिए गए दिव्य वस्त्र तथा पीठ भाई गोरिल द्वारा दी गई शक्ति हैं , तब तक उनका कभी कोई अनिष्ठ नहीं कर सकता हैं | तो वह होली के दिन गंगनाथ को बिना दिव्य वस्त्र तथा पीठ भाई गोरिल द्वारा दी गई शक्तिया को बिना धारण किये देखते हैं तो अचानक धोखे से गंगनाथ का सिर धड़ से अलग कर दिया जाता है और फिर तीनों की निर्मम हत्या कर दी जाती है , मरने से पूर्व भाना श्राप देती है कि पर्वत का वह अंचल सूख जाएगा और हरियाली नष्ट हो जाएगी । इस श्राप का डर खाकर बाद में यहां देवताओं के रूप में स्थापना की जाती है और तभी से गंगनाथ को कुल देवता के रूप में पूजा जाने लगा | गंगनाथ देवता को कुमाऊ क्षेत्र के अनेको जिले एवम् क्षेत्रो में कुल देवता के रूप में पूजा जाता हैं।
ऐसे करते करते वह प्रतिदिन चोरी चुपके भाना से मिला करते थे और जल्द ही बहाना गर्भवती हो जाती हैं ग्रामीणों को गंगनाथ और भाना के प्रेम सम्बन्ध का पता चलता हैं तो सभी ग्रामीण लोग उसके पिता किशनानंद जोशी दीवान को मामले की जानकारी देते हैं और जैसे ही किशनानंद जोशी को जब भाना गंगनाथ के प्रेम प्रसंग के बारे में मालूम होता है तो वह भाना , गंगनाथ और वर्मी बाला को मौत के घाट उतारने की योजना बनाता है । लेकिन किशनानन्द जोशी को जब यह पता चलता हैं कि गंगनाथ के शरीर में जब तक बाबा गोरखनाथ के दिए गए दिव्य वस्त्र तथा पीठ भाई गोरिल द्वारा दी गई शक्ति हैं , तब तक उनका कभी कोई अनिष्ठ नहीं कर सकता हैं | तो वह होली के दिन गंगनाथ को बिना दिव्य वस्त्र तथा पीठ भाई गोरिल द्वारा दी गई शक्तिया को बिना धारण किये देखते हैं तो अचानक धोखे से गंगनाथ का सिर धड़ से अलग कर दिया जाता है और फिर तीनों की निर्मम हत्या कर दी जाती है , मरने से पूर्व भाना श्राप देती है कि पर्वत का वह अंचल सूख जाएगा और हरियाली नष्ट हो जाएगी । इस श्राप का डर खाकर बाद में यहां देवताओं के रूप में स्थापना की जाती है और तभी से गंगनाथ को कुल देवता के रूप में पूजा जाने लगा | गंगनाथ देवता को कुमाऊ क्षेत्र के अनेको जिले एवम् क्षेत्रो में कुल देवता के रूप में पूजा जाता हैं।
उत्तराखण्ड के देवता गंगनाथ जी की कथा उत्तराखंड में हिमालय की श्रेणीयों में लाखो देवी देवताओ का निवास है। और उन सभी देवी देवताओ की अपनी अपनी परमपरागत बहुत सी कथाऐं भी है। ... यहा के बहुत से देवी देवताओ ने यही पे जन्नम लिया और अपनी शक्ति ओर कार्य कौशल्य से देवता के रूप मे पूजे जाने लगे।
जय गंगनाथ देवता।
जय गोल्ज्यू देवता।
माता भाना जोशी जी की पुत्री थी ना की पत्नी।। कृपया इसे सुधार दीजिये।। जय हो श्री बाबा गंगानाथ🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंजय हो श्री बाला गोरिया महाराज 🙏🙏🙏
विवेक जी आपका धन्यवाद बताने के लिए हमने सुधार कर दिया है।
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