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उत्तराखंड की चार पवित्र नदियों के नाम कौन-कौन से है।

उत्तराखंड की चार पवित्र नदियों के नाम?
नमस्कार दोस्तो आज हम अपने ब्लॉग जय उत्तराखंडी की इस पोस्ट में उत्तराखंड की चार नदियों के नाम और उनके बारे में बताऊंगा और दोस्तो पोस्ट को अंत तक जरूर पड़ना।

उत्तराखंड की चार पवित्र नदियां।

1. कालीनदी
2. अलकनंदा
3. भागीरथी
4. कौसी
वैसे तो इन चार नदियों के अलावा और भी मुख्य नदियां है- रामगंगा, यमुना और गंगा नदी।
पर आज हम यंहा पर मुख्य चार नदी के बारे में बात करंगे।

कालीनदी- काली नदी, जिसे महाकाली, कालीगंगा या शारदा के नाम से भी जाना जाता है, भारत के उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश राज्यों में बहने वाली एक नदी है। इस नदी का उद्गम स्थान वृहद्तर हिमालय में ३,६०० मीटर की ऊँचाई पर स्थित कालापानी नामक स्थान पर है, जो उत्तराखण्ड राज्य के पिथौरागढ़ जिले में है।


इस नदी का नाम काली माता के नाम पर पड़ा जिनका मंदिर कालापानी में लिपु-लीख दर्रे के निकट भारत और तिब्बत की सीमा पर स्थित है। अपने उपरी मार्ग पर यह नदी नेपाल के साथ भारत की निरंतर पूर्वी सीमा बनाती है, जहां इसे महाकाली कहा जाता है। यह नदी उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों में पहुँचने पर शारदा नदी के नाम से भी जानी जाती है। काली नदी का झुकाव क्षेत्र लगभग १५,२६० वर्ग किलोमीटर है, जिसका एक बड़ा हिस्सा (लगभग ९,९४३ वर्ग किमी) उत्तराखण्ड में है, और शेष नेपाल में है।

काली नदी उत्तराखण्ड राज्य की चार प्रमुख नदियों में एक है, और इस कारण इसे उत्तराखण्ड के राज्य-चिह्न पर भी दर्शाया गया है।यह नदी कालापानी में ३,६०० मीटर से उतरकर २०० मीटर ऊँचे तराई मैदानों में प्रवेश करती है, और इस कारण यह जल विद्युत उत्पादन के लिए अपार संभावना उपलब्ध कराती है। भारतीय नदियों को इंटर-लिंक करने की परियोजना के हिमालयी घटक में कई परियोजनाओं के लिए इस नदी को भी स्रोत के रूप में प्रस्तावित किया गया है। सरयू नदी काली की सबसे बड़ी सहायक नदी है। कूटी, धौलीगंगा, गोरी, चमेलिया, रामगुण, लढ़िया अन्य प्रमुख सहायक नदियां हैं। तवाघाट, धारचूला, जौलजीबी, झूलाघाट, पंचेश्वर, टनकपुर, बनबसा तथा महेन्द्रनगर इत्यादि नदी के तट पर बसे प्रमुख नगर हैं।

अलकनंदा- अलकनन्दा नदी गंगा की सहयोगी नदी हैं।

प्राचीन नाम - विष्णुगंगा उद्गम- संतोपंथ ग्लेशियर, संतोपंथ ताल (छीर सागर) के अलकापुरी बैंक

सहायक नदियां- सरस्वती,ऋषिगंगा,लक्मनगंगा,पश्चिमी धोलीगंग,बालखिल्य,बिरहिगंगा,पातालगंगा,गरुनगंगा,नंदाकिनी,पिंडर,मंदाकिनी।


यह गंगा के चार नामों में से एक है। चार धामों में गंगा के कई रूप और नाम हैं। गंगोत्री में गंगा को भागीरथी के नाम से जाना जाता है, केदारनाथ में मंदाकिनी और बद्रीनाथ में अलकनन्दा। यह उत्तराखंड में संतोपंथ और भगीरथ खरक नामक हिमनदों से निकलती है। यह स्थान गंगोत्री कहलाता है। अलकनंदा नदी घाटी में लगभग 195 किमी तक बहती है। देव प्रयाग में अलकनंदा और भागीरथी का संगम होता है और इसके बाद अलकनंदा नाम समाप्त होकर केवल गंगा नाम रह जाता है।अलकनंदा चमोली (रुद्रप्रयाग) टेहरी और पौड़ी जिलों से होकर गुज़रती है। गंगा के पानी में इसका योगदान भागीरथी से अधिक है। हिंदुओं का प्रसिद्ध तीर्थस्थल बद्रीनाथ अलखनंदा के तट पर ही बसा हुआ है। राफ्टिंग इत्यादि साहसिक नौका खेलों के लिए यह नदी बहुत लोकप्रिय है। तिब्बत की सीमा के पास केशवप्रयाग स्थान पर यह आधुनिक सरस्वती नदी से मिलती है। केशवप्रयाग बद्रीनाथ से कुछ ऊँचाई पर स्थित है।

भागीरथी- भागीरथी भारत के उत्तराखण्ड राज्य में बहने वाली एक नदी है। यह देवप्रयाग में अलकनंदा से मिलकर गंगा नदी का निर्माण करती है। भागीरथी का उद्गम स्थल उत्तरकाशी ज़िले में गौमुख (गंगोत्री ग्लेशियर) है।


भागीरथी यहाँ २५ कि॰मी॰ लम्बे गंगोत्री हिमनद से निकलती है। २०५ किमी बहने के बाद, भागीरथी व अलकनंदा का देवप्रयाग में संगम होता है, जिसके पश्चात वह गंगा के रूप में पहचानी जाती है।
भागीरथी गोमुख स्थान से 25 कि॰मी॰ लम्बे गंगोत्री हिमनद से निकलती है। यह स्थान उत्तराखण्ड राज्य में उत्तरकाशी जिले में है। यह समुद्रतल से 618 मीटर की ऊँचाई पर, ऋषिकेश से 70 किमी दूरी पर स्थित हैं।

कौसी- कोसी नदी या कोशी नदी नेपाल में हिमालय से निकलती है और बिहार में भीम नगर के रास्ते से भारत प्रज्वल में दाखिल होती है। इसमें आने वाली बाढ से बिहार में बहुत तबाही होती है जिससे इस नदी को 'बिहार का अभिशाप(बिहार क शोक)'कहा जाता है।


इसके भौगोलिक स्वरूप को देखें तो पता चलेगा कि पिछले 250 वर्षों में 120 किमी का विस्तार कर चुकी है। हिमालय की ऊँची पहाड़ियों से तरह तरह से अवसाद (बालू, कंकड़-पत्थर) अपने साथ लाती हुई ये नदी निरंतर अपने क्षेत्र फैलाती जा रही है। उत्तरी बिहार के मैदानी इलाकों को तरती ये नदी पूरा क्षेत्र उपजाऊ बनाती है। नेपाल और भारत दोनों ही देश इस नदी पर बाँध बना चुके हैं; हालाँकि कुछ पर्यावरणविदों ने इससे नुकसान की भी संभावना जतायी थी।

यह नदी उत्तर बिहार के मिथिला क्षेत्र की संस्कृति का पालना भी है। कोशी के आसपास के क्षेत्रों को इसी के नाम पर कोशी कहा जाता है। Koshi nadi.
काठमाण्डू से एवरेस्ट की चढ़ाई के लिए जाने वाले रास्ते में कोसी की चार सहायक नदियाँ मिलती हैं। तिब्बत की सीमा से लगा नामचे बाज़ार कोसी के पहाड़ी रास्ते का पर्यटन के हिसाब से सबसे आकर्षक स्थान है। अरुण, तमोर, लिखु, दूधकोशी, तामाकोशी, सुनकोशी, इन्द्रावती इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ हैं।

नेपाल में यह कंचनजंघा के पश्चिम में पड़ती है। नेपाल के हरकपुर में कोसी की दो सहायक नदियाँ दूधकोसी तथा सनकोसी मिलती हैं। सनकोसी, अरुण,प्रज्वल तमर नदियों के साथ त्रिवेणी में मिलती हैं। इसके बाद नदी को सप्तकोशी कहा जाता है। बराहक्षेत्र में यह तराई क्षेत्र में प्रवेश करती है और इसके बाद से इसे कोशी (या कोसी) कहा जाता है। इसकी सहायक नदियाँ एवरेस्ट के चारों ओर से आकर मिलती हैं और यह विश्व के ऊँचाई पर स्थित ग्लेशियरों (हिमनदों) के जल लेती हैं। त्रिवेणी के पास नदी के वेग से एक खड्ड बनाती है जो कोई 10 किलोमीटर लम्बी है। भीमनगर के निकट यह भारतीय सीमा में दाख़िल होती है। इसके बाद दक्षिण की ओर 260 किमी चलकर कुरसेला के पास गंगा में मिल जाती है।


उम्मीद करता हूं कि आपको पोस्ट पसन्द आयी होगी।

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