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त्रिशूल पर्वत, उत्तराखण्ड में चोटी | trishul mountain in uttarakhand

त्रिशूल पर्वत, उत्तराखंड में चोटी, त्रिशूल पर्वत कंहा है।

त्रिशूल पर्वत हिमालय की तीन चोटियों के समूह का नाम है, जो पश्चिमी कुमाऊ में स्थित हैं। यह उत्तराखंड राज्य के मध्य में बागेश्वर जिले के निकट हैं। ये नंदा देवी पर्वत से दक्षिण-पश्चिम दिशा में 15 कि॰मी॰ (9 मील) दूर नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान को घेरते हुए शिखरों के समूह का दक्षिण-पूर्वी भाग हैं। इन तीन शिखरों के कारण ही इनका नाम हिन्दू भगवान शिव के अस्त्र त्रिशूल का नाम दिया गया है। मुख्य शिखर त्रिशूल-1 की ऊंचाई 7000 मीटर (22970 फीट) है। यह शिखर 7000 मी से ऊंची पहली चोटी है, जिस पर (1907 में) चढ़ाई की गई थी।


तीन शिखरों के नाम क्रमशः त्रिशूल 1, त्रिशूल2 एवं त्रिशूल 3 हैं। मुख्य पुंजक एक उत्तर-दक्षिण रिज है, जिसमें त्रिशूल-1 उत्तरी छोर व त्रिशूल-3 दक्षिणी छोर पर हैं। त्रिशूल का सर्वोत्तम दृश्य बेदिनी बुग्याल एवं कौसानी से दिखाई देता है। इससे कुछ ही किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में नंदा घंटी, एवं एकदम दक्षिण-पूर्व में मृगथनी शिखर हैं।

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यह तीनों शिखर एक रिज के माध्यम से आपस में जुड़े हैं। इस हिमशिखर को पवित्र माना जाता है। पता है, आरम्भ में जब इस पीक पर चढ़ने के प्रयास शुरू हुए तो  वहां के पोर्टर त्रिशूल शिखर पर चढ़ने से मना कर देते थे, क्योंकि उनकी नजरों में तो त्रिशूल एक पवित्र और पूजनीय पर्वतचोटी है।

कई प्रयासों के बाद त्रिशूल पीक पर पहुंचने का पहला सफल प्रयास 1907 में हुआ था। तब टी. जी़ लॉन्गस्टाफ अपने साथ दो अन्य ब्रिटिश पर्वताराहियों और कुछ गाइड और पोर्टरों के साथ इस शिखर को स्पर्श करने में कामयाब हुए थे। उन्होंने घाटी से होकर त्रिशूल हिमनद का मार्ग चुना था। पता है रास्ते में उन्हें कुछ स्थानों पर बर्फीले तूफानों का सामना भी करना पड़ा था, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। तुम जानते हो ना, जो हिम्मत नहीं हारता, वह हर मुसीबत का सामना कर सकता है। 
एक विशेष बात यह है कि तब हिमालय के हिमशिखरों में त्रिशूल सबसे ऊंची पीक थी, जिस पर इंसान ने फतह पायी थी अर्थात् उस समय तक त्रिशूल से ऊंची किसी चोटी को इंसान छू नहीं सका था। एक रोचक बात और बतायें, 1987 में यूगोस्लाविया के एक अभियान में पर्वतारोहियों ने एक साथ तीनों चोटियों के रिज को पार किया। पर्वतों पर चढ़ाई के दौरान उन्हें कहीं-कहीं बर्फ की दीवार जैसे पहाड़ भी पार करने पड़े। इसके लिए उन्हें बर्फ की कुल्हाड़ी से रास्ता बना-बना कर चढ़ना पड़ता था। 

आश्चर्य की बात यह है कि इस अभियान के दो सदस्यों ने शिखर से पैराग्लाइडिंग भी की थी। त्रिशूल समूह पर पर्वतारोहण के लिए कुमाऊं में अल्मोड़ा, कौसानी, ग्वालदम, देबाल, बेदिनी बुग्याल और रूपकुण्ड होकर बेस कैम्प जाना होता है।

यह तो तुम जानते हो हर व्यक्ति पर्वतारोहण नहीं बन सकता, लेकिन हिमालय की इस पवित्र चोटी को देखने की चाह हर इंसान की होती है। इसलिए त्रिशूल पीक के मनोरम स्वरूप को देखना हो तो तुम कौसानी जा सकते हो। वहां अनेक व्यू पाइंट हैं, जहां से इस हिमशिखर को देखा ज सकता है। सोच लो त्रिशूल पर्वत शिखर के बर्फ से ढके तीनों शिखर देख तुम्हारा मन भी बड़े होकर पर्वतारोही बनने को करने लगेगा।

त्रिशूल पर्वत में हर साल कितने पर्वतारोही ट्रैकिंग करने और घूमने जाते है, त्रिशूल पर्वत बहुत सुंदर जगह है।


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